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लगता है, मेरी छाती छलनी कर दी गयी हो......!!



हरे भरे वृक्षों पर लोग लोहे की कील से अपना विज्ञापन ठोक जाते हैं। ऐसी कोई जगह नहीं बची जहाँ विज्ञापन न हो। इन वृक्षों में धंसी हुई कील देख कर लगता है कि यह मेरी छाती में ही धंसी हुई है। जिसकी पीड़ा का अहसास मुझे हो रहा है। एक तरफ़ तो सरकार वृक्ष लगाने के लिए हरियाली कार्यक्रम चला रही है, दूसरी तरफ़ वृक्षों को घायल किया और काटा जा रहा है। पी डब्लु डी वाले इन पर कार्यवाही क्यों नहीं करते?

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