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An ode to **Sajida's Pain!



लिये सर पे सच की रिदा कह रही है, 
वो अश्कों को करके विदा कह रही है ! 
टपकते लहू से भिगो कर के दामन, 
ये अख़लाक़ की साजिदा कह रही है !  
भरोसा जो टूटा है इंसानियत से 
उसे किस तरह आप लौटा सकोगे...!!  
बताओ मेरा बाप लौटा सकोगे......  

वो गाँधी के इस देश से कह रही है, 
वो नफरत के परिवेश से कह रही है ! 
सियासत के बेशर्म चेहरे भी सुन लें, 
वो मोदी से अखिलेश से कह रही है !  
ये धर्मांध से अंध भक्तों के ज़रिये 
हुआ है जो वो पाप लौटा सकोगे...!!  
बताओ मेरा बाप लौटा सकोगे....  

हवाओं की सरगोशियॉं कह रही हैं, 
ये सच की फरामोशियॉं कह रही हैं ! 
थे इस क़त्ल में जैसे खुद भी वो शामिल, 
ये पी एम की ख़ामोशियॉं कह रही हैं !!  
लगा है जो भारत के दामन पे धब्बा, 
ये है एक अभिशाप लौटा सकोगे !!  
बताओ मेरा बाप लौटा सकोगे....???

** (Sajida is the daughter of Akhlaque, the poor Muslim whom a saffron affiliated fanatic mob killed in Dadri UP)

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